बुधवार, 13 दिसंबर 2017

डायरी के पन्ने (ऐन फ्रैँक) भाग 5

शुक्रवार, 19 मार्च, 1943
मेरी प्यारी किट्टी,

अभी एक घंटा भी नहीं बीता था कि हमारी खुशी निराशा मेँ बदल गई । टर्की अभी युद्ध मेँ शामिल नहीँ हुआ है । हुआ यह था कि एक केँद्रीय मंत्री ने यह कहा था कि टर्की जल्दी ही तटस्थता छोड़ देगा। डैम चौक पर अखबार बेचने वाला चिल्ला रहा था; 'टर्की इंग्लैड के पक्ष मेँ'। अखबार उसके हाथ से झपटे जा रहे थे, और इस तरह से हमने वह उत्साहवर्धक अफ़वाह
सुनी थी।

हज़ार गिल्डर के नोट अवैध मुद्रा घोषित किए जा रहे हैं। यह ब्लैक मार्केट का धंधा करने वालों और उन जैसे लोगों के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, लेकिन उससे बडा संकट उन लोगों का है
जो या तो भूमिगत हैं या जो अपने धन का हिसाब-किताब नहीं दे सकते। हज़ार गिल्डर का नोट बदलवाने के लिए आप इस स्थिति मेँ होँ कि ये नोट आपके पास आया कैसे और उसका सुबूत भी देना
होगा। इन्हेँ कर अदा करने के लिए उपयोग मेँ लाया जा सकता है ; लेकिन अगले हफ़्ते तक ही। पाँच सौ गिल्डर के नोट भी तभी बेकार हो जाएँगे। गिएज एंड कंपनी के पास अभी हज़ार गिल्डर के कुछ नोट बाकी थे जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं था। इन्हेँ कंपनी ने आगामी वषों के लिए अनुमानित कर अदायगी मेँ निपटा दिया है। इसलिए फ़िलहाल तो गर्दन पानी के ऊपर ही है।

मिस्टर डसेल को कहीं से बाबा आदम के ज़माने की पैरों से चलने वाली दाँतों की ड्रिल मशीन मिल गई है। इसका मतलब, संभवत: जल्दी ही मेरे दाँतों का पूरा चेक-अप ही पाएगा।

जब घर के कायदे-कानून मानने की बात आती है तो मिस्टर डसेल भयंकर रूप से आलस दिखाते हैं। न केबल वे चार्लोट से पत्राचार कर रहे हैं, और भी कई दूसरे लोगों के साथ भी चिट्ठी-पत्री बनाए हुए हैं। मार्गोट, जो कि उनकी डच अध्यापिका हैँ ,उनके ये पत्र ठीक करती हैँ । पापा ने उन्हेँ मना किया है कि वे ये सब कारोबार बंद करेँ और मार्गोट ने उनके पत्र ठीक करने बंद कर दिए हैँ । लेकिन मुझे लगता है ,वे अपनी चिट्ठी-पत्री फिर से शुरू कर देँगे ।

जनाब हिटलर घायल सैनिकोँ से बातचीत कर रहैँ । हमने उन्हेँ रेडियो पर सुना । सचमुच यह सब कुछ करुणाजनक था । सवालोँ-जवाबोँ का सिलसिला इस तरह से चला रहा था :
'मेरा नाम हैनरिक शापेल है।'
'आप कहाँ जख्मी हूए थे?'
'स्नालिनग्राद के पास ।'
'किस किस्म का घाव है यह?'
'दोनों पाँव बरफ़ की वज़ह से गल गए हैं और बाएँ बाजू में हड्डी टूट गई है।'

ये बातें जस की तस दे रही हूँ जो मैंने रेडियो पर कठपुतलियों के खेल की तरह सुनीं। घायल सैनिक जैसे अपने ज़ख्मो को दिखाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। जितने ज्यादा घाव, उतना ज्यादा गर्व । उनमें से एक तो हिटलर से हाथ मिलाने के खयाल से ही इतना उत्साहित
हुआ जा रहा था (मेरे खयाल से तो अभी भी वह उसी उत्साह में होगा) कि वह एक शब्द भी नहीं बोल पाया।

मुझसे डसेल साहब का साबुन ज़मीन पर गिर गया था। मेरी किस्मत खराब थी कि मेरा पैर उस पर पड़ गया। अब पूरा साबुन ही गायब है। मैंने पापा से कहा है कि मिस्टर डसेल
को इसकी भरपाई कर दें। उनको हर महीने युद्ध के समय के घटिया साबुन की एक ही बट्टी मिलती है।

तुम्हारी ऐन

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