बुधवार, 13 दिसंबर 2017

डायरी के पन्ने (ऐन फ्रैँक) भाग 3

शुक्रवार, 10 जुलाई, 1942
मेरी प्यारी किट्टी,

मैँने घर के लंबे-चौड़े बखान के साथ हो सकता है तुम्हें बोर कर दिया ही लेकिन मैं अभी भी यही सोचती हूँ कि तुम जानो, हम कहाँ आ पहुँचे हैं। मैं यहाँ कैसे आ पहुँची हूँ, इसके बारे मेँ तुम्हें मेरे आगे के पत्रों से पता चलेगा।

लेकिन पहले मैं अपना किस्सा जारी रखूँगी। मैँने अभी तक
अपनी बात पूरी नहीं की है। 263 प्रिँसेनग्रास्ट मेँ हमारे पहुँचने पर मिएप तुरत हमेँ लंबे गलियारे से सीढ़ियों से ऊपर दूसरी मंजिल पर और फिर एनेक्सी मेँ ले आई । उसने हमेँ अकेला छोड़ा और हमारे पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया । मार्गोट अपनी साइकिल पर पहले ही आ चुकी थी हमरी राह देख रही थी ।

हमारी बैठक और दूसरे कमरे सामान से ठूँसे पड़े थे । कहीँ तिल धरने की जगह नहीँ थी । पिछले महीनोँ मेँ जो कार्ड-बोर्ड के बक्से ऑफ़िस मेँ भेजे गए थे ,चारोँ तरफ़ फ़र्श पर , बिस्तरोँ पर फैले पड़े थे । छोटा कमरा फ़र्श से छत तक कपड़ोँ से अटा पड़ा था । उस रात अगर हम ढ़ंग से सोने के बारे मेँ सोचते तो ये सारा सामान तरतीब से लगाने की ज़रूरत थी। हमें सफ़ाई का काम तुरंत शूरू कर देना था। माँ और मार्गोट की तो हाथ हिलाने की भी हिम्मत नहीं थी। वे बिना चादरों चाली गद्दियों पर ही पसर गईँ। थकी, बेहाल और पस्त । लेकिन पापा और मैँने सफ़ाई का मोर्चा सँभाला और तुरंत जुट गए ।

हम सारा दिन पैकिंग खोलते रहे, अलमारियाँ भरते रहे, कीलें ठोकते रहे और तमाम
सामान ठिकाने से लगाते रहे। आखिर थक कर चूर हो गए और साफ़ बिस्तरों पर ढह गए । हमने पूरे दिन में एक बार भी गरम खाना नहीं खाया था। लेकिन परवाह किसे थी। माँ और मार्गोट की थकान के मारे बुरी हालत थी और पापा और मुझे फुर्सत नहीं थी।

मंगलवार की सुबह हमने पिछली रात के छोड़े हुए काम को पूरा करना शुरू किया । बेप और मिएप हमारे राशन कूपनोँ से शॉपिँग करने गई और पापा ने ब्लैक आउट वाले परदे लगाए । मैँने रसोई का फ़र्श रगड़-रगड़ कर साफ़ किया । सवेरे से रात तक हम लगातार काम मेँ जुटे रहे ।

बुधवार तक तो मुझे यह सोचने की फ़ुर्सत ही नहीँ मिली कि मेरी ज़िंदगी मेँ कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका है । अब गुप्त एनेक्सी मेँ आने के बाद पहली बार मुझे थोड़ी फ़ुर्सत मिली कि तुम्हेँ बताऊँ कि मेरी ज़िँदगी मेँ क्या हो चुका है और क्या होने जा रहा है ।

तुम्हारी ऐन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

History of Taj mahal

The Taj Mahal (/ˌtɑːdʒ məˈhɑːl, ˌtɑːʒ-/;[3] meaning "Crown of the Palace"[4]) is an ivory-white marble mausoleum on the south ban...