गुरुवार, 26 जून 2014

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बुधवार, 25 जून 2014

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा(भक्ति गीत)

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा।सदा शक्ति बरसाने वाला प्रेम सुधा बरसाने वाला।। वीरोँ को हर्षाने वाला,मातृभूमि का तन मन सारा।झंडा ऊंचा रहे हमारा।। स्वतन्त्रता के भीषण रण मेँ रखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण मेँ कांपे शत्रु देखकर मन मेँ मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा ऊंचा रहे हमारा।। इस झंडे के नीचे निर्भय ले स्वराज हम अविचल निश्चय बोलो भारत माता की जय स्वतन्त्रता हो ध्येय हमार।झंडा ऊंचा रहे हमारा।।आओ प्यारे वीरोँ आओ देश एकता पर बलि-बलि जाओ।एक साथ सब मिलकर गाओ प्यारा भारत देश हमारा। झंडा ऊंचा रहे हमारा।।इसकी शान न जाने पाये चाहे जान भले ही जाये।विश्व विजय करके दिखलाये तब होवे प्रण पूर्ण हमारा। झंडा ऊंचा रहे हमारा। विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। ♦♦♦♦♦♦♦♦

प्रतिज्ञा

भारत मेरा देश हे। समस्त मेरे भाई-बहिन हैं।मैं अपने देश से प्रेम करता/करती हुँ तथा मुझे इसकी विपुल एंव विविध थातियोँ पर गर्व है। मैं इसके योग्य होने के लिए सदैव प्रयत्न करता रहुँगा/करती रहुँगी।मैँ अपने माता-पिता, अध्यापक एंव समास्त बाड़ों का सम्मान करूँगा/करूँगी तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ शिष्टता से व्यवहार करूँगा/करुँगी। मैँ अपने देश एंव देशवासियों के प्रति निष्ठा बनाए रखने की प्रतिज्ञा करता /करती हूँ। मेरी प्रसन्त्रता केवल उनके कल्याण एवं उनकी समृद्धि मेँ ही है।

मंगलवार, 24 जून 2014

मामूली जिंदगी जीते हुए (कविता)

जानता हूं कि मैँ दुनिया को बदल नहीँ सकता, न लड़ कर उससे जीत ही सकता हूं हां लड़ते -लड़ते शहीद हो सकता हूं और उससे आगे एक शहीद का मकबरा या एक अदाकार की तरह मशहूर... लेकिन शहीद होना एक बिलकुल फ़र्क तरह का मामला है बिलकुल मामूली जिंदगी जीते हुए भी लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैँ।

सोमवार, 23 जून 2014

पैसे कमाएँ(make onlion earn)

hello मित्र मेँ आपके लिए एक खूशखबरी लेकर आया हु ये खूशखबरी सुनोगे तो आप को विश्वास नही होगा । परन्तु मुझे पुरा यकीन है और आप को भी यकीन होगा जब आप लोग इस wabsite पर अपना अकाउंट बनाओगे। अब खुशखबरी सुनीये।♦♦♦ आप लोगो को onlion पैसा कमाने का मौका मिल रहा है। इस wabsite पर आप Onlion job कर सकते है और महीने मेँ आप 1,000 हजार रुपये कमा सकते है सिर्फ इस पर 2 घंटे work करना है। इसमे आपको Q. पुछे जायेगे ओर FREE SMS ,free coll कर सकते है और पैसे भी कमा सकते है। अब आप के मन मेँ शंका हो रही होगी की ये पैसे हमे कैसे मिलेगे।इसकी चिँता करने की कोई जरुरत नही है । पहले आप नीचे दिये गये लिँक पर क्लिक करके अपना aucunt बनाये। आपना नाम,मोँ. नम्बर ,पासवर्ड और अपना e-mail/gmail भरना है ओर आपका खाता बनकर तैयार हो जायेगा। यहाँ पर क्लिक करे। fast2sms.com/signup.php?user=lWXNcq आपके खाते मेँ पैँसे जमा होते रहेगे। और आप को aucunt बनाने के भी 5 रुपये मिलेगे । आप यहाँ से free मेँ all sim card मेँ reachrag भी कर सकते है DTH ,Free reachrag,कर सकते है और ये पैसे आप Benk (बैँक) मेँ भी ट्रार्सफर करवा सकते है इस मेँ आप ये Mobile Recharge, Balance Transfer ,DTH Recharge, Free T-Shirt ,Bank मेँ पैसे Transfer कर सकते है। तो जल्दी किजिए और आज ही New User's बनीये।

राजस्थान अध्ययन

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हिन्दी व्याकरण

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सामान्य विज्ञान (भाग 3)

♦ फ्यूज तार एक पतला तार होता है जे अल्प गलनांक तथा कम प्रतिरोध वाले मिश्र धातु (टिन व सीसा) का बना होता है। ♦ टेलीफोन, टेलीग्राफ, विद्युत घण्टी तथा विद्युत क्रेन विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर कार्य करते हैँ। ♦ हीटर प्लेट प्लास्टर ऑफ पेरिस एवं चीनी मिट्टी के मिश्रण से बनाई जाती है जो विद्युत की कुचालक होती है। ♦ हीटर मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम, केलोराइट, क्रोमेल आदि का बना हुआ प्रयुक्त किया जाता है। ♦ विद्युत स्त्री या प्रेस मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम अभ्रक के टुकड़ोँ मेँ रखा जाता है। ♦ विद्युत टोस्टर जो डबल रोटी को सेकने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम तार का बना होता है। ♦ रेफ्रिजरेटर न्यून दाब पर द्रव के वाष्पन सिद्धान्त पर कार्य करता है। ♦ रेफ्रिजरेटर मेँ अमोनिया, मिथाइल क्लोराइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (फ्रीऑन) एवं हाइड्रोफ्लोरो कार्बन प्रशीतक के रूप मेँ काम मेँ लाये जाते हैँ। ♦ किसी चालक मेँ विद्युत धारा प्रवाहित करने पर वह गर्म हो जाता है इसे विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहते हैँ। ♦ हीटर, प्रेस, विद्युत केतली, टोस्टर, ऑवन आदि युक्तियाँ धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर कार्य करती हैँ। इन सभी युक्तियोँ मेँ प्रायः नाइक्रोम जैसी मिश्र धातु के तापन तन्तु काम मेँ लाये जाते हैँ। ♦ बैसेमर विधि से फफोलेदार ताँबा प्राप्त होता है। ♦ अपरिस्कृत लोहा ढलवां लोहा या कच्चा लोहा कहलाता है जबकि पिटवा लोहा, लोहे का शुद्ध रूप होता है। ♦ सल्फर का उपयोग मुख्य रूप से गंधक का अम्ल, बारूद, औषधी एवं कीटनाशी के रूप मेँ किया जाता है। ♦ फॉस्फोरस का उपयोग दियासलाई उद्योग, मिश्रधातु तथा कीटनाशी यौगिकोँ के निर्माण मेँ किया जाता है जबकि इसके यौगिक उर्वरक के रूप मेँ प्रयुक्त होते हैँ। ♦ वायुमण्डल की ओजोन परत सूर्य की किरणोँ से आने वाली हानिकारक पराबैँगनी किरणोँ का अवशोषण करती है। ♦ गन्धक के अम्ल का उपयोग डिटर्जेन्ट उद्योगोँ मेँ, विद्युत बैटरी तथा प्रयोगशाला मेँ बहुतायत से किया जाता है। ♦ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उपयोग क्लोरीन गैस के निर्माण तथा विरंजक चूर्ण बनाने मेँ किया जाता है। ♦ सीमेन्ट मेँ चूना, सिलिका, ऐलूमिना, मैग्नीशियम ऑक्साइड तथा फेरिक ऑक्साइड आदि होते हैँ। ♦ प्लास्टर ऑफ पेरिस कैल्सियम का अर्द्धहाइड्रेट होता है जो खिलौने, मूर्तियाँ तथा प्लास्टर के काम आता है। ♦ क्रिस्टलीय अपररूपोँ मेँ हीरा, ग्रेफाइट एवं फुलरीन प्रमुख हैँ। ♦ हीरा अत्यधिक कठोर, ताप एवं विद्युत का कुचालक होता है। ♦ ग्रेफाइट नर्म व चिकना, ताप एवं विद्युत का सुचालक होता है। ♦ एल्केनोँ के पॉली क्लोरोफ्लोरो व्युत्पन्नोँ को क्लोरो–फ्लुओरो कार्बन या फ्रीऑन कहते हैँ। फ्रीऑन का उपयोग प्रशीतक के रूप मेँ किया जाता है। ♦ संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) का उपयोग ईंधन के रूप मेँ तथा महानगरोँ मेँ चलने वाले वाहनोँ मेँ पेट्रोल तथा डीजल के विकल्प के रूप मेँ किया जा रहा है। ♦ प्राकृतिक रबर आइसोप्रीन का बहुलक होता है। ♦ प्राकृतिक रबर को गंधक के साथ गर्म करना वल्कीनीकरण कहलाता है। ♦ साबुन एवं अपमार्जक निर्माण की क्रियाविधि भिन्न–भिन्न है। अपमार्जक कठोर जल के साथ भी अच्छे परिणाम देते हैँ। ♦ कीटोँ को मारने या प्रतिकर्षित करने के लिए प्रयुक्त रसायनोँ को कीटनाशी कहते हैँ।

सामान्य विज्ञान (भाग 2)

♦ लसीकाणु (लिम्फोसाइट) कोशिका प्रतिरक्षी पैदा करती है। ♦ भारत ने अपना पहला अंतरिक्षयान आर्यभट्ट 1975 मेँ प्रक्षेपित किया। ♦ भारत की प्रथम जमीन से हवा मेँ मार करने वाली निम्न दूरी की मिसाइल त्रिशूल है। ♦ बल की इकाई डाइन है। ♦ सामान्य व्यक्ति की नब्ज की गति 70-80 के मध्य होती है। ♦ प्रकाश वर्ष मेँ दूरी मापी जाती है। ♦ रमन प्रभाव प्रकाश से संबंधित है। ♦ पारे का रासायनिक सूत्र Hg है। ♦ यदाकदा ऐसा अनुभव किया गया है कि थर्मस मेँ जब खोलता हुआ पानी डाला जाता है तो शीशा चटक जाता है, क्योँकि खोलता हुआ तरल पदार्थ अधिक दबाव डालता है। ♦ हवा मेँ ऑक्सीजन की मात्रा लगभग प्रतिशत 20 % है। ♦ सूर्य के प्रकाश से विटामिन डी प्राप्त होता है। ♦ गर्मी मेँ दूध मेँ वसा तत्त्वोँ की मात्रा मेँ कमी हो जाती है। ♦ बैटरी मेँ सल्फ्यूरिक एसिड का उपयोग किया जाता है। ♦ युवा व्यक्ति के दिल की धड़कन औसत प्रति मिनट 72 होती है। ♦ विद्युत बल्ब मेँ नाइट्रोजन गैस भरी जाती है। ♦ रात्रि के समय वृक्ष के नीचे सोना उपयुक्त नहीँ माना जाता है क्योँकि उस समय पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैँ। ♦ एनीमिया रोग आयरन (लौह) की कमी से होता है। ♦ जल का रासायनिक सूत्र H²O है। ♦ स्वर्ण धातु पर हवा एवं ऑक्सीजन का प्रभाव न्यूनतम होता है। ♦ एक स्वस्थ मनुष्य अधिकतम कैलोरी की खपत फुटबॉल खेलते हुए करता है। ♦ नाभिकीय विखंडन मेँ ऊर्जा विमोचन रासायनिक ऊर्जा के रूप मेँ होता है। ♦ अस्थि और उपास्थि के निर्माण और अनुरक्षण के लिए कैल्शियम तत्त्व की मुख्य आवश्यकता होती है। ♦ प्रोटीँस मेँ आमतौर पर मिलने वाली एमिनो अम्लोँ की संख्य 20 होती है। ♦ हवाई जहाज का आविष्कार ओरविल एवं विलियम राइट ने किया। ♦ वैज्ञानिक थॉम्स एल्वा एडीसन के नाम सर्वाधिक आविष्कारोँ का पैटेण्ट हुआ है। ♦ रूस के अंतरिक्ष स्टेशन का नाम मीर है। ♦ फैदोमीटर समुद्र की गहराई नापने वाले यंत्र का नाम है। ♦ यदि किसी रेडियोएक्टिव तत्त्व का 75 प्रतिशत भाग 24 वर्ष मेँ विघटित होता है तो उस तत्त्व का अर्द्धायु काल 12 वर्ष होगा। ♦ प्लास्टर ऑफ पेरिस डी-हाइड्रेशन के कारण जमता है। ♦ ध्रुवण की घटना यह दर्शाती है कि प्रकाश तरंगे अनुप्रस्थ प्रकृति की होती हैँ। ♦ प्राकृतिक गैस के अवयव के रूप मेँ प्राप्त होने वाली प्रमुख अक्रिय गैस हीलियम है। ♦ डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को भारतीय प्रक्षेपास्त्रोँ के पूर्ण स्वदेशी कार्यक्रम का निर्माता माना जाता है। ♦ ध्वनि की तीव्रता को डेसीबल मेँ मापा जाता है। ♦ ग्लोबल वार्मिँग ग्रीन हाऊस का प्रभाव है। ♦ श्री हरिकोटा स्थान भारत के रॉकेट प्रक्षेपण के लिए प्रसिद्ध है। ♦ ओजोन मंडल मेँ छिद्र के लिए उत्तरदायी गैस क्लोरोफ्लोरो कार्बन है। ♦ प्रथम भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने विश्व मेँ लघु तरंग रेडियो का आविष्कार किया। ♦ कम्प्यूटर के निर्माण मेँ सिलिकॉन की आवश्यकता होती है। ♦ कारखानोँ से निकलने वाले प्रदूषित धुएँ से दमा रोग होता है। ♦ रिएक्टर स्केल का प्रयोग भूकम्प को नापने मेँ होता है। ♦ अनियंत्रित औद्योगिकीकरण से अम्ल वर्षा होती है। यह मुख्य रूप से नाइट्रस और सल्फर डाइऑक्साइड के कारण होती है। ♦ आमतौर से श्वसनीय शोथ रोग पेशी खिँचाव की दशाओँ से सम्बद्ध होता है। ♦ भौतिक परिवर्तन से पदार्थ के भौतिक गुणोँ मेँ परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन अस्थाई एवं उत्क्रमणीय होता है। भौतिक परिवर्तन के उदाहरण— सोने का पिघलना, काँच का टूटना, शक्कर का पानी मेँ घुलना, आश्वन, संघनन, उर्ध्वपातन आदि। ♦ रासायनिक परिवर्तन स्थाई एवं सामान्यतः अनुत्क्रमणीय होते हैँ। उदाहरण— कोयले का जलना, लोहे पर जंग लगना, दूध का दही बनना, अवक्षेपण, किण्वन, दहन आदि। ♦ भौतिक राशियोँ के मात्रक– • दूरी — मीटर • भार/बल — न्यूटन • कार्य/ऊर्जा — जूल • समय — सैकण्ड • तरंग दैर्ध्य — एंग्स्ट्राम • आवृत्ति — कम्पन प्रति सै. (हर्ट्ज) • विभवान्तर — वोल्ट • विद्युत आवेश — कूलाम • शक्ति — वाट • द्रव्यमान — किलोग्राम • ताप — केल्विन • शोर (ध्वनि) की तीव्रता — डेसीबल (dB) • विद्युत धारा — एम्पीयर • प्रतिरोध — ओम • दाब — पास्कल • विद्युत धारिता — फैरड। ♦ घरोँ मेँ भेजी जाने वाली प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टता 220 वोल्ट तथा आवर्ती 50 चक्र प्रति सैकण्ड या हर्ट्ज होती है। ♦ घरोँ मेँ लगे विद्युत उपकरण बल्ब, पंखा, दूरदर्शन, हीटर, रेफ्रीजरेटर आदि को समान्तर क्रम मेँ लगाया जाता है। ♦ विद्युत परिपथ मेँ धारा प्रवाहित करने पर प्रति सैकण्ड किये गये कार्य या कार्य करने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैँ। विद्युत शक्ति का मात्रक जूल प्रति सैकण्ड या वाट है। ♦ वाट शक्ति का छोटा मात्रक है। 1 किलोवाट = 1000 वाट, 1 मेगावाट = 1000000 वाट, 1 अश्वशक्ति (Horse Power) = 746 वाट। ♦ यदि किसी बल्ब पर 100 वाट तथा 220 वोल्ट लिखा है तो इसका तात्पर्य है कि बल्ब 220 विभवान्तर पर प्रयुक्त करने पर 100 वाट शक्ति व्यय करेगा अर्थात् 1 सैकण्ड मेँ 100 जूल ऊर्जा खर्च होगी। ♦ विद्युत ऊर्जा को किलोवाट घण्टा मेँ मापा जाता है। 1 किलोवाट घण्टा को एक यूनिट कहते हैँ। एक किलोवाट घण्टा (KWh) = 1000 वाट x घण्टा = 1000 X 60 X 60 वाट सैकण्ड = 3.6 x 10&sup6; ♦ ऊर्जा रूपान्तरित करने वाले कुछ उपकरण – • डायनमो — यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ • ट्यूब लाइट — विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा मेँ • विद्युत मोटर — विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा मेँ • विद्युत बल्ब — विद्युत ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा मेँ • लाऊडस्पीकर — विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा मेँ • सोलर सेल — सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ • मोमबत्ती — रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा मेँ • माइक्रोफोन — ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ • विद्युत सेल — रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ • सितार — यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा मेँ।

सामान्य विज्ञान (भाग 1)

महत्त्वपूर्ण तथ्य– ♦ तंत्रिका कोशिका मानव शरीर की सबसे बड़ी कोशिका है। ♦ महाधमनी मानव शरीर की सबसे बड़ी धमनी है। ♦ मानव शरीर मेँ सर्वाधिक मात्रा मेँ पाया जाने वाला पदार्थ जल (55-60%) है। ♦ शुक्राणु मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका होती है। यह एक नर जनन कोशिका है। ♦ एड्रीनलीन हार्मोन को ‘करो या मरो’ हार्मोन भी कहा जाता है। ♦ हाइपोथेलेमस ग्रंथि को ‘सुपर मास्टर (Head Master)’ ग्रंथि कहा जाता है। ♦ जबड़े की हड्डी मानव शरीर की सबसे मजबूत हड्डी होती है। ♦ मानव शरीर की सबसे छोटी हड्डी स्टेपीज है जो कर्ण मेँ होती है। ♦ सबसे लम्बी हड्डी फीमर (जांघ मेँ) होती है। ♦ 4° से. तापक्रम पर जल का घनत्व अधिकतम होता है। ♦ बॉक्साइट एल्युमिनियम का प्रमुख खनिज होता है। ♦ रुधिर की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है। ♦ विटामिन सी घाव भरने मेँ सहायक है। ♦ केले मेँ अनिषेक जनन पाया जाता है। ♦ तिलचिट्टा मेँ रुधिर रंगहीन होता है। ♦ तम्बाकू मेँ निकोटिन नामक विषैला पदार्थ होता है। ♦ मूत्र का पीला रंग यूरोक्रोम नामक वर्णक के कारण होता है। ♦ बीयर किण्वन से बनाई जाती है जबकि शराब आसवन से बनाई जाती है। ♦ परावर्तन के कारण हमेँ वस्तुएँ दिखाई देती हैँ। ♦ आसंजक बल के द्वारा लिफाफे पर डाक टिकट चिपकी रहती है। ♦ एन्थ्रेसाइट प्रकार का कोयला उत्तम गुणवत्ता का होता है। इसमेँ कार्बन सर्वाधिक मात्रा मेँ होता है। ♦ द्रव्यमान का मात्रक किलेग्राम तथा भार का मात्रक न्यूटन होता है। ♦ पारा, सिजियम, गैलियम द्रव धातु होते हैँ, शेष ठोस धातु होते हैँ। ♦ –40° सेन्टीग्रेड तथा –40° फॉरेनहाइट समान होते हैँ। ♦ सोयाबीन मेँ सर्वाधिक मात्रा मेँ प्रोटीन पाया जाता है। ♦ प्रोटीन की कमी से– क्वाशिओस्कारे तथा मेरेस्मस रोग हो जाते हैँ। ♦ सोडियम स्वतंत्र अवस्था मेँ जल उठता है, अतः इसे केरोसीन मेँ रखा जाता है। ♦ सफेद फास्फोरस को पानी मेँ रखा जाता है। ♦ चाँदी विद्युत का सर्वोत्तम चालक होता है। ♦ पृष्ठ तनाव के कारण पानी की बूँदे गोल हो जाती हैँ। ♦ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 28 फरवरी को मनाया जाता है। ♦ कार्बन डाइऑक्साइड गैस ग्रीन हाऊस प्रभाव के लिए प्रमुख उत्तरदायी गैस है। ♦ ओजोन मंडल पराबैँगनी किरणोँ को अवशोषित कर पृथ्वी के जीवोँ की रक्षा करता है। ♦ कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग आग बुझाने के लिए किया जाता है। ♦ पहला हृदय प्रत्यारोपण डॉ. क्रिस्टियन बर्नार्ड द्वारा किया गया था। ♦ भारी जल परमाणु भट्टी मेँ मंदक के रूप मेँ प्रयुक्त होता है। ♦ एबी रूधिर वर्ग वाले मानव को सार्वत्रिक ग्राही तथा ओ रूधिर वर्ग वाले मानव को सार्वत्रिक दाता कहते हैँ। ♦ लाल रूधिर कणिकाओँ का निर्माण अस्थिमज्जा मेँ होता है तथा श्वेत रूधिर कणिकाओँ का निर्माण अस्थिमज्जा, प्लीहा व लसिका कोशिकाओँ मेँ होता है। ♦ रक्त का लाल रंग हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन मेँ मौजूद लौह तत्त्व के कारण होता है। ♦ क्लोरोफार्म का प्रयोग निश्चेतक (बेहोश करने वाला पदार्थ) के रूप मेँ किया जाता है। ♦ मानव शरीर मेँ 206 हड्डियाँ होती हैँ। ♦ टंगस्टन सबसे कठोर पदार्थ होता है। ♦ एंजाइम विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैँ। ♦ यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि होती है। ♦ लाल रुधिर कणिकाएँ केन्द्रक विहीन कोशिकाएँ होती हैँ। ♦ वायुमंडल मेँ सबसे अधिक मात्रा मेँ पाया जाने वाला तत्त्व नाइट्रोजन है। ♦ स्टैथोस्कोप से हृदय की धड़कनोँ को सुना जा सकता है। ♦ 0° केल्विन तापक्रम को परम शून्य तापमान कहते हैँ। –273° से. का केल्विन मेँ मान 0° केल्विन होता है। ♦ भू-परत मेँ सबसे अधिक मात्रा मेँ पाया जाने वाला तत्त्व ऑक्सीजन है। ♦ समतल दर्पण मेँ वस्तु का प्रतिबिम्ब समान दिखाई देता है जिसका उपयोग घरोँ मेँ किया जाता है। ♦ उत्तल दर्पण मोटर वाहन चालक उपयोग मेँ लेते हैँ। ♦ चिकित्सक कान, नाक, गले आदि के आंतरिक भागोँ की जाँच के लिए अवतल दर्पण का प्रयोग करते हैँ। ♦ सोडियम बाइकार्बोनेट को बैकिँग सोडा कहा जाता है। ♦ परमाणु बम नाभिकीय विखंडन पर आधारित है। ♦ लाल, हरा तथा नीला प्राथमिक रंग हैँ। ♦ इन्द्रधनुष मेँ बैँगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल रंग (बैँजानीहपीनाला) होते हैँ। ♦ सर्वाधिक तरंग दैर्ध्य लाल प्रकाश का तथा सबसे कम बैँगनी प्रकाश का होता है जबकि सर्वाधिक विचलन बैँगनी रंग का तथा सबसे कम लाल रंग का होता है। ♦ हाइड्रोजन परमाणु ही ऐसा परमाणु है जिसके नाभिक मेँ न्यूट्रॉन नहीँ होता। ♦ काँसा ताँबा तथा टिन का बना होता है, गन मैटल ताँबा, टिन तथा लैड का, पीतल ताँबा तथा जस्ते का तथा स्टेनलैस स्टील मेँ लौहा, क्रोमियम, कार्बन तथा निकल मिले होते हैँ। ♦ कोबाल्ट 60 का उपयोग कैँसर रोग मेँ, रेडियो समस्थानिक स्वर्ण 198 का उपयोग रक्त कैँसर के उपचार मेँ किया जाता है। ♦ कैडमियम का नाभिकीय रिएक्टर मेँ शृंखला अभिक्रिया के नियंत्रक के रूप मेँ उपयोग किया जाता है। ♦ सूर्य तथा हाइड्रोजन बम मेँ उत्सर्जित ऊर्जा संलयन प्रक्रिया के उदाहरण हैँ। ♦ वायरस जनित रोग— एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिँड्रोम), डेँगू ज्वर, पोलियो, चेचक, पीलिया (हिपैटाइटिस), रेबीज आदि। ♦ जीवाणु जनित रोग— तपेदिक (क्षय), प्लेग, डिप्थीरिया, कोढ़ (कुष्ठ), मोतीझरा, टिटनेस, निमोनिया, हैजा आदि। ♦ आनुवंशिक रोग— हीमोफीलिया, मंगोलिज्म, वर्णांधता आदि। ♦ शुद्ध जल का pH मान 7 होता है। ♦ 24 कैरेट स्वर्ण को शुद्ध स्वर्ण माना जाता है। ♦ मानव शरीर मेँ सबसे कठोर तत्त्व एनामिल (दाँतो पर) होता है। ♦ विटामिन ई चर्बी युक्त विटामिन है। ♦ भाप इंजन का आविष्कार जेम्स वॉट ने किया। ♦ पीने वाली शराब मेँ एथनॉल एल्कोहल होता है। ♦ मानव का तापमान 310 K या 36.9° C होता है। ♦ कच्चा तेल काला सोना कहलाता है। ♦ माध्यम के तापमान मेँ वृद्धि के साथ प्रकाश की गति बढ़ती है। ♦ डिस्क पर भंडारण हेतु किसी डाटा फाइल का आकार छोटा करने के लिए उसके संधारण को संपीड़न कहते हैँ। ♦ विटामिन के रक्त के स्कंदन मेँ (थक्का जमाने मेँ) सहायक विटामिन है।

राष्ट्रीय गीत:-वंदे मातरम्

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्, सुखदाम् वरदाम्, मातरम्! वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥ ♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 6

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला, मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला, मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा, जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।। यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला, यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला, किसी समय की सुखद स्मृति है साकी बनकर नाच रही, नहीं-नहीं किव का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२।। कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला, कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला! पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा, कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।।१३३।। विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला, शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई, जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।। बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला, किलत कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला, मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को, विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।। ♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦समाप्त♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 5

नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला, नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला, साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं, इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।। मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला, क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला, साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा, प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।। क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला, क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला, पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से! मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।। देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला, देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला, समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता, किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।। एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला, भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला, छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था, विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।।१०८।। बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला, भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला, एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया, जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।। एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला, एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला, एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे, आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।। जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला, छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला, आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते, कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलतीफिरती मधुशाला!।१११। कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला, कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला, कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है, प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२। बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला, कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला, पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना, मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवसथी मधुशाला।।११३। छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला, चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला, अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछेफिरती है, क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४। यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जबन मिली हाला, तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला, जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५। कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला, टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला, कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए, कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६। कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला, कितने हाथों को रक्खेगा याद भलापागल प्याला, कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी, कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७। दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता – हाला! हाला! मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे नमिलता था प्याला, मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में, मैं अब जमकर बैठ गया हँू, घूम रही है मधुशाला।।११८। मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला, प्याले में मदिरालय बिंिबत करनेवाली है हाला, इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया - मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९। किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला, इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला, अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते, एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।। वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला, मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है, भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।। मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला, पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला, साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया, मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।। मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छंछा प्याला, गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला, कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया! बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।। कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला, कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला! पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना? फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।। अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला, फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया - अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।।१२५।। ‘मय’ को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, ‘हाला’ ‘मीना’ को ‘मधुपात्र’ दिया ‘सागर’ को नाम गया ‘प्याला’, क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी ‘मय-महिफल’ अब अपना ली है मैंने करके ‘मधुशाला’।।१२६।। कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला, कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला, कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी, फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।। जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला, जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला, जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है, जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।।जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला, जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला, आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो, पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।। हर जिह्वा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।।♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 4

याद न आए दूखमय जीवन इससे पी लेता हाला, जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला, शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है, पर मैँ वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।। गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला, रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिनयौवन का साकी सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।। यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए कालीहाला, पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला, यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है, पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।।८०।। ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला, हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।८१।। मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला, मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२।।मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला, दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।। और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला, प्राण प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालोँ को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४।। नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला, जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।। ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला, पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला, और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला, किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।८६।। यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला, चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला, स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल, ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।८७।। पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों –साकी बाला, नित्य पिलाने वाला प्याला, पी जाने वाली हाला, साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है, कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।। शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला, ‘और, और’ की रटन लगाता जाता हर पीने वाला, कितनी इच्छाएँ हर जाने वाला छोड़ यहाँ जाता! कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।८९।। जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला, जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला, जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना,न मिला साकी, जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।।९०।। देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला, देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला, ‘बस अब पाया!’- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे, किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।९१।। कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला, छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला, कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती, आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।९२।। ‘आ आगे’ कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला, होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला, नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी, बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।।९३।। हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला, अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला, दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो, रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।९४।। प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला, प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला, दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ, व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।९५।। मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला, मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला, हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई ‘दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!’।।९६।। मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला, यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला, मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में, ‘भाग्य प्रबल, मानव निर्बल’ का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।९७।। किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला, ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला, किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया, किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।९८।। उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला, उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला, प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में! पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।। साकी के पास है तिनक सी श्री, सुख, संपित की हाला, सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला, रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते, जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।१००।। साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला, क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला, हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो, हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।। साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला, पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला, जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने, भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।।जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला, जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला, मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं, दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।।१०३।।♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 3

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला, बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला, एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।।५१।। और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला, इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला, कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।। आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला, आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला, होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर जहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।। यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला, ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला, मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ, किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।। सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला, द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला, वे दिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों, युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।५५।। वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला, रंभा की संतान जगत में कहलाती ‘साकीबाला’, देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे! किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।। कभी न सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’, कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’, सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं, सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।। श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला, सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला, व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे, ठुकराते हिर मंदिर वाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।। एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला, अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला, रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में, साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।। बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला, समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला, हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को, मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।। कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला, आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है, कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१।। आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला, छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ, एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।। आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला, भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला, और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ, अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।। सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही,मुझको कन्चन का प्याला छलक रही है जिसमेँ माणिक रूप मधुर मादक हाला, मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।। दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला, भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला, नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ, अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५।। छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला, आने के ही साथ जगत में कहलाया ‘जानेवाला’, स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी, बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।। क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला, क्या जीना, निरंचित न जब तक साथ रहे साकीबाला, खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे, मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।। मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला! मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला! इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ, सिंधुँ-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।६८।। क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला, क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला, थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को, प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।। लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला, लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला, लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का, लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।। कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला, दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटाफूटा प्याला, मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी, जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१।।ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला, गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला, साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा, दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।७२।। क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला, भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला, मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला, काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।७३।। प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला, नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला, जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से, जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४।। अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला, क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला, तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई, हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।। यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला, पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला, क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।।यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला, यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला, हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर, मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।। ♦♦♦♦♦♦♦♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 2

बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, पी लेने पर तो उसके मुंह पर पड़ जाएगा ताला, दास द्रोहियों दोनों में है जीतसुरा की, प्याले की, विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४।। हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला, वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला, स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने, पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।२५।। एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला, दुनिया वालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।। नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला, कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला, जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही, जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।२७।। बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला, बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला, बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने, बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहेयह मधुशाला।।२८।। सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला, मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला, मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर,पर मधुशाला की, कहा करो ‘जय राम’ न मिलकर, कहा करो ‘जय मधुशाला’।।२९।। सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला, बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला, झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर, बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।। तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला, सीधा करके भर दी जाए उसमें सागर जल हाला, मज्ञल्तऌा समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए, फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।३१।। अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला, भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती, आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।३२।। पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला, माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं, झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।।३३।। प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला, छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला, छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।३४।। मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला, हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ, छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।३५।। साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला, तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरालेती हाला, अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते, प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।३६।। उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला, जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७।। अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला, पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।३८।। किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला, किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९।। साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला, जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला, योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए, देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०।। वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला, रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला, विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में, पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।। चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला, जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला, मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते, चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।। घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला, अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला, लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं, हंस मज्ञल्तऌा होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।४३।। हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला, चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला, कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं, पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।। धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला, वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला, अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता, स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।४५।। दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, ठुकराया ठाकुर द्वारे ने देख हथेली पर प्याला, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को? शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।४६।। पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला, सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला, मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता, मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।। सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।४८।। बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला, गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला, शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।।४९।।मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर,उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।।५०।। ♦♦♦♦♦

मधुशाला (काव्य) भाग 1

स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला, स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला, पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है, स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।। मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला, मेरे तन के लोहू में है पिचहतर प्रतिशत हाला, पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर, मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।। बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला, बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला, पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।। पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़कर के मधुशाला।। मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।। प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला, मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता, एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।। भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ,दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।। मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला, भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला, उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ, अपने ही में हूँ मैं साकी, पीने वाला, मधुशाला।।५।। मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला, ‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’।।६।। चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला! ‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलाने वाला, हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे, किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।। मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला, हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला, ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का, और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।। मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला, अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला, बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे, रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।। सुन, कलकल, छलछल, मधुघट से गिरती प्यालों में हाला, सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला, बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है, चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही,ले, मधुशाला।।१०।। जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला, वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला, डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनितपखावज करती है, मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।। मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला, अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला, पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले, इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।। हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला, अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला, बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले, पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।। लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला, फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला, दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं, पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।। जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला, जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला, ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है, जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।। बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला, देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला, ‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’ ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।। धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला, मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला, पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदोंको जो काट चुका, कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।। लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला, हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला, हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा, व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।। बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला, रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’ ‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’ मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।। बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला, बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला, लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें, रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।। बड़े बड़े पिरवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला, हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला, राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए, जमे रहेंगे पीने वाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१।। सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला, सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु,हलाहल औ’ हाला, धूमधाम औ’ चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें, झगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२।। भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका,मदचंचल प्याला, छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला, पटे कहाँ से, मधु औ’ जग की जोड़ी ठीक नहीं, जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, परनित्य नवेली मधुशाला।।२३।। ♦♦♦

पहेलियाँ

१. गहना पहना क्यों नहीं ,पानी पिया क्यों नहीं? २.जूता पहना क्यों नहीं समोसा खाया क्यों नहीं ? ३. घर में माँ ने डांटा क्यों? स्..

चुटकले


शनिवार, 14 जून 2014

राष्ट्रगान: जन गण मन

जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता। पँजाब,सिन्धु,गुजरात, मराठा, द्राविड़ उत्कल बंगा। विन्ध्य,हिमाचल,यमुना,गंगा, उच्छल जलधि तरंगा । तब शुभ आशीष मांगे । गाये तव जय गाथा,जन गण मंगलदायक जय हे। भारत भाग्य विधाता, जय हे,जय हे,जय हे। जय जय जय जय हे। ♦♦♦

History of Taj mahal

The Taj Mahal (/ˌtɑːdʒ məˈhɑːl, ˌtɑːʒ-/;[3] meaning "Crown of the Palace"[4]) is an ivory-white marble mausoleum on the south ban...